सतयुग दर्शन ट्रस्ट में सदाचारी बनने का शुभ संकल्प ले किया नववर्ष का भव्य स्वागत

Posted by: | Posted on: December 31, 2018

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव ) सतयुग दर्शन ट्रस्ट  फऱीदाबाद, आरमभ से ही समाज के प्रत्येक आयु वर्ग के सदस्यों के चारित्रिक उद्धार के प्रति प्रतिबद्ध होकर, तरह-तरह के आयोजनों के माध्यम से सामाजिक उत्थान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। इसी संदर्भ में ट्रस्ट ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर बड़े ही उत्कृष्ट व सुन्दर ढंग से, वर्तमान युवाओं को जाग्रति में आने का आवाहन देते हुए, बुरे से अच्छा इंसान बनने का समझौता दिया। इस संदर्भ में कार्यक्रम के आरमभ में सजनों को सृष्टि के खेल से परिचित कराते हुए ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने कहा कि जानो कि ब्राहृ ही सबसे बड़ी परम तथा नित्य चेतन सत्ता है जो जगत का मूल कारण और सत्त, चित्त, आनन्द स्वरूप मानी गई है। यही नित्य चेतन सत्ता हर प्राणी की आत्मा में परमात्मा के रूप में विद्यमान है। इसी ब्राहृ सत्ता को ग्रहण करने पर अर्थात् ब्राहृ की शक्ति, सामथ्र्य व बल का उपभोग करने पर मानव वेद विहित कर्म करते हुए इस जगत में आने का अपना प्रयोजन सहजता से सिद्ध कर पाता है। इस शुभ कारज में सुनिश्चित रूप से सफलता प्राप्त करने के लिए मानव को जन्मोपरांत इस ब्राहृ या पारमार्थिक सत्ता का ज्ञान प्राप्त करना अति आवश्यक होता है। इस परमार्थी तत्व का ज्ञान रखने पर ही वह अपने ब्राहृ स्वरूप को यथार्थता जान पाता है व ब्राहृज्ञानी कहलाता है। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होने स्पष्ट किया कि ब्राहृज्ञानी ही समस्त वेदराशि अर्थात् वेदांत यानि वेद ध्वनि का तत्व समझने वाला होता है। इसीलिए वह ब्राहृज्ञ जगत को ब्राहृमय मान उसमें स्थिरता व धीरता से शुद्ध ब्राहृ भाव अनुसार आत्मतुष्टि से विचरता हुआ, अपने जीवन के सभी कर्तव्य सहर्ष साहस से धर्मसंगत निभाता हुआ, अंत ब्राहृगति अर्थात् मोक्ष को प्राप्त होता है। यह अपने आप में जीवन का वास्तविक सत्य जान व सत्य स्वरूप हो उत्तम कार्य करते हुए सर्वश्रेष्ठता को प्राप्त होने की बात होती है जिससे सत-कीर्ति प्राप्त होती है। जानो केवल ऐसा सत्यवादी मानव ही इस मायावी जगत में अपने धर्म पर दृढ़ रहते हुए मानवता यानि सजनता का प्रतीक कहलाता है।

सजन जी ने उपस्थित युवाओं को कहा कि आपको भी ऐसा ही सजनता का प्रतीक मानव बनना है। इस हेतु याद रखना है कि यह मायावी संसार चर और अचर अर्थात् जड़ और चेतन सृष्टि से सुसज्जित है। इन चराचर प्राणियों का गुरु, परमेश्वर अर्थात् प्रणव मंत्र श4द ब्राहृ ही है। केवल वह ही उचित विद्या या कला सिखा, वह उपाय या मूल युक्ति बताने में समर्थ है जिसके द्वारा सारे कार्य तुरन्त सिद्ध हो जाते है। इसी महत्ता के दृष्टिगत, सजनों एक मानव के लिए अंतर्मुखी हो यानि अपने ख़्याल को आत्मेश्वर संग जोड़, समुचित ढंग से जीवन जीने की कला, केवल परमेश्वर से ही सीखने का विधान है। अत: आप भी इस तथ्य के दृष्टिगत च्च्श4द है गुरु, शरीर नहीं हैज्ज् इस विचारधारा को मानो और ज्ञानी को नहीं ज्ञान को अपनाओ व निमित्त में नहीं नित्य में श्रद्धा बढ़ाओ। इसके अतिरिक्त सजनों उपस्थित युवाओं को इस विचारधारा के प्रति कटिबद्ध रखने के लिए उन्होंने मूलमंत्र आद् अक्षर यानि प्रणव मंत्र का जाप कराया। श्री सजन जी ने कहा कि मूलमंत्र आद् अक्षर यानि प्रणव मंत्र के जाप की यह क्रिया आपके मन-मस्तिष्क की शांति के लिए अति आवश्यक है। इस क्रिया को अफुरता से समपन्न करने पर ही आप अपने बुद्धि व मन से नियम-नीतिनुसार पूरा कार्य लेने में सक्षम हो सकते हो। आशय यह है कि यदि अक्षर ठीक चले और ख़्याल अफुर रहे तो मनमत किसी कारण भी बुद्धि पर हावी नहीं हो सकती अपितु बुद्धि जो कहती है मन प्रसन्नतापूर्वक वही करता है। इसके विपरीत यदि मानव का ख़्याल हर समय संसारी बातों के कनरस व नकारात्मक सोचों में डूबा रहता है तो मनमत, बुद्धि पर हावी हो जाता है। परिणामस्वरूप बुद्धि भ्रमित, चित्त वृत्तियाँ अस्थिर व चचंल तथा अंत:करण मलीन हो जाता है। इस तरह मानसिक स्थिरता भंग हो जाती है और सुख-दु:ख में सम अवस्था में बने रहना कठिन हो जाता है। यही कारण है कि ऐसा इंसान फिर दु:ख आने पर रोता है व सुख आने पर हर्षाता है। ऐसा न हो इसलिए कह रहे हैं कि अक्षर का अजपा जाप अफुरता से करो यानि जगत के समस्त कार्यव्यवहार करते हुए भी ख़्याल आद् अक्षर अर्थात् ब्राहृ श4द ओ3म् के जाप में निरंतर रत रहे। ऐसा करने से आत्मप्रकाश ह्मदय व्याप्त हो जाएगा और उसके ओज व तेज से मन में छाया हुआ अज्ञान अंधकार पूर्णता छँट जाएगा। परिणामत: संकल्प कुसंगी सजन और संगी बनने लगेगा यानि मन उपशम हो जाएगा, चित्त एकाग्र हो जाएगा, वृत्ति, स्मृति व बुद्धि निर्मल हो जाएगी और ख़्याल अफुर हो जाएगा। इस तरह अन्दर आत्मिक बल का वर्धन होगा, आत्मविश्वास जाग्रत होगा और आत्मिक शक्ति के प्रयोग द्वारा ख़ुद पर आत्मनियन्त्रण रख जितेन्द्रिय बनना व मानवता के सिद्धान्तों पर डटे रहना सहज हो जाएगा यानि सत्य-धर्म के निष्काम रास्ते पर चलते हुए व परोपकार कमाते हुए अपना जीवन सफल बना लोगे और अपने यथार्थ सत -चित्त-आनन्द ज्योति स्वरूप परब्राहृ परमेश्वर को पा लोगे। ऐसा अद्भुत होते ही सजनों आपके लिए च्च्ईश्वर है अपना आपज्ज् के भाव से जगत में विचरना सहज हो जाएगा और आप इसी जीवनकाल में अपने जीवन के परम ध्येय यानि मोक्ष को पा विश्राम पा लोगे।





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