एम वी एन विश्वविद्यालय में विधि संकाय के छात्र/छात्राओं के लिए महिलाओं एवं बच्चों के कानूनी अधिकारों के विषय पर विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया

Posted by: | Posted on: February 21, 2019

पलवल ( विनोद वैष्णव )| हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देशन में जिला विधिक सेवाएँ प्राधिकरण के तत्वावधान में माननीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश एंव चेयरमेन अशोक कुमार वर्मा के मार्गदर्शन में एम वी एन विश्वविद्यालय, मितरोल (पलवल) में विधि संकाय के छात्र/छात्राओं के लिए महिलाओं एवं बच्चों के कानूनी अधिकारों के विषय पर विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया।कार्यशाला का उद्देश्य भारतीय संविधान की विधिक, सामाजिक न्याय और न्याय के समान अवसर की भावना को जन-जन तक पहुंचाना है। इसी क्रम में नलसा, हलसा व डलसा के न्यायदूत के रुप में एमवीएनयू के विधि विद्यार्थियों को विकसित व जागरूक करना था।सम्पूर्ण कार्यशाला 5 सत्रों में हुई, कार्यशाला का शुभारंभ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एंव सचिव डॉ कविता कांबोज व एम.वी.एन विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रो. (डॉ) जे.वी देसाई, कुलसचिव डॉ राजीव रतन व विधि विभागाध्यक्ष डॉ राहुल वार्ष्णेय ने दीप प्रज्वलित करके किया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एंव सचिव डॉ कविता कांबोज ने बताया कि लोगों की न्याय में आस्था व विश्वास के कारण ही नालसा, हालसा व डलसा सजग प्रहरी की भांति अथक रूप से कार्यरत हैं और सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों, महिलाओं व बच्चों के विधिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सशक्त रूपसे प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने नालसा की विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं को बताते हुए कहा डलसा, जनता और विभिन्न सरकारी विभागों के मध्य पुल का काम करता है। लाभार्थियों को विभिन्न योजनाओं का लाभ जमीन तक लाने में मदद करता है। उन्होंने कहा कि हमें केवल कानून को जानना ही नहीं चाहिए, बल्कि यह भी सोचना चाहिए कि कानून क्यों और किसलिए अस्तित्व में आया, क्योंकि कानून और समाज एक दूसरे के पूरक हैं।इस अवसर पर विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रो. (डॉ) जे.वी देसाई ने बताया कि जिस प्रकार सरकार ने स्नातक स्तर पर पर्यावरण संबंधी विषय को अनिवार्य किया है, ठीक उसी प्रकार महिलाओं और बच्चों के विभिन्न विधिक अधिकारों को भी अनिवार्य रूप से दसवीं कक्षा से पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।उन्होंने कहा की महिला को जबरदस्ती साड़ी पहनने के लिए बाध्य करना, जहां साड़ी पहनना जरूरी नहीं है। वह भी मानसिक प्रताड़ना में आता है।इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ राजीव रतन ने बताया कि स्वतंत्रता और समानता, न्याय की अवधारणा के लिए आवश्यक हैं। किसी भी समाज की प्रगति महिलाओं और बच्चों की सामाजिक स्थिति से पहचानी जाती है, वह समाज उतना ही विकसित होगा जहां महिलाओं और बच्चों को समानता और स्वतंत्रता समान रूप से दी जाती। कार्यशाला में पैनल अधिवक्ता जगत सिंह रावत, नरेन्द्र कुमारा भाटी, हरमीत कुमारी ने रिसोर्स पर्सन/विशेषज्ञ वक्ता के तौर पर दहेज निषेध, कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा सम्बन्धी, दंड संहिता के प्रावधानों, पोक्सो एक्ट, एसिड पीडिताओं के अधिकारों, बाल विवाह निषेध अधिनियम, नालसा योजनाओं, अनिवार्य शिक्षा अधिनियम आदि विभिन्न विषयों के विधिक, तकनीकी व मानवीय पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की और व्यवहारिक अनुभवों पर जागरूक किया और विधि छात्रों को विभिन्न कानूनी मामलों में कानूनी सलाह मुफ्त प्रदान की गई। उन्हें विभिन्न हेल्पलाइन नंबरों के बारे में भी जानकारी प्रदान की। विभिन्न कानूनी विषयों पर चर्चा भी की गई। एक प्रशनोत्तरी भी करवाई गई। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डाॅ राहुल वार्ष्णेय, डॉ रामवीर सिंह, डॉ अनु बहल मेहरा, शबाना, अजय कुमार, प्रेरणा सिंह, विधी प्रवक्ताओं ने विशेषज्ञ वक्ता के तौर पर विधि छात्रों को जागरूक किया। कार्यशाला में विभिन्न छात्र व छात्राओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच संचालन जगवीर सौरोत ने किया। कार्यशाला में प्राधिकरण की ओर से पैनल अधिवक्ताओं, लाॅ फेकल्टी के विशेषज्ञ वक्ताओं तथा विधि छात्रों को प्रमाण पत्र व स्मृति चिह्न से सम्मानित किया गया। विधि छात्रों को कानूनी पुस्तकें व पम्पलेट भी वितरित किये गये। उन्हें कार्यशाला में भागीदारी के लिए प्रमाण पत्र भी प्रदान किय गये।

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