एमवीएन विश्वविद्यालय स्कूल आफ फार्मास्यूटिकल साइंस के विभागाध्यक्ष डॉ तरुण विरमानी ने अप्रयुक्त दवाओं के सुरक्षित डिस्पोजल एवं जेनेरिक दवाओं के भ्रांतियों के विषय में व्याख्यान दिया

Posted by: | Posted on: July 24, 2019

पलवल (विनोद वैष्णव ) | एमवीएन विश्वविद्यालय स्कूल आफ फार्मास्यूटिकल साइंस के विभागाध्यक्ष डॉ तरुण विरमानी ने वैश्य फार्मेसी कॉलेज,रोहतक में हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल द्वारा प्रायोजित कॉन्टिनयिंग फार्मेसी एजुकेशन प्रोग्राम में अप्रयुक्त दवाओं के सुरक्षित डिस्पोजल एवं जेनेरिक दवाओं के भ्रांतियों के विषय में व्याख्यान दिया उन्होंने बताया कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग में आने वाली दवाइयों के प्रयोग के बाद कैसे उसको डिस्पोज किया जाए। सरकारी अस्पतालों में आधुनिक उपकरण इंसीनरेटर तो लगे हैं परंतु बायो मेडिकल वेस्ट का उत्पादन इतना ज्यादा है कि सारे बायो मेडिकल वेस्ट का डिस्पोजल नहीं हो पाता।
दवाइयों को पानी में फेंकने से जलीय जीव-जंतुओं के ऊपर भारी खतरा मंडरा रहा है और अगर उसे जलाया जाए तो वायु प्रदूषण का खतरा है। उपचार में सरकार की तरफ से एक बॉक्स प्रत्येक मेडिकल स्टोर पर लगाना चाहिए जिससे लोग अपनी अप्रयुक्त दवाइयां वापस कर सकें एवं इंसीनरेटर के द्वारा उसका सुरक्षित निस्तारण किया जा सके।भारत सरकार की जन औषधि परियोजना के तहत और मॉडल प्रिसक्रिप्शन एक्ट के अनुसार किसी भी डॉक्टर को जेनेरिक दवा लिखना जरूरी है। लेकिन जेनेरिक दवाओं के संदर्भ में आम लोगों में दो गलत धारणाएं प्रचलित हैं, जिनके अनुसार जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं इसलिए वह प्रभावी रूप से कारगर नहीं है। इस समस्या पर डॉ विरमानी ने कहा कि किसी भी बीमारी की दवाई बनाने के लिए सबसे पहले प्रयोग करने पड़ते हैं, उसके बाद उसका क्लीनिकल ट्रायल करना पड़ता है। तब कहीं किसी दवा का सॉल्ट बनता है। किसी भी बीमारी की दवा के सॉल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है। इस सॉल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से पेटेंट कराती है। आमतौर पर डॉक्टर्स महंगी दवाएं लिखते हैं, इससे ब्रांडेड दवा कंपनियां मुनाफाखोरी करती है। महंगी दवा और उसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की कीमत में कम से कम 5 से 10 गुना का अंतर होता है, कई बार जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं की कीमत में 90 परसेंट तक का भी अंतर देखा गया है। जेनेरिक दवाएं सस्ती इसलिए होती है क्योंकि उनका पेटेंट अधिकार समाप्त हो जाता है और क्लिनिकल ट्रायल पहले ही हो चुका होता है। जिससे उसका खर्चा कम हो जाता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार अगर डॉक्टर जेनेरिक दवाएं प्रिसक्राइब करें तो किसी भी देश का स्वास्थ्य खर्च 70 परसेंट तक कम किया जा सकता है।हरियाणा स्टेट फार्मेसी काउंसिल के इस कदम को कुलपति प्रो डॉ जे बी देसाई एवं कुलसचिव डॉ राजीव रतन ने अत्यंत ही सराहनीय बताया एवं आश्वस्त किया कि विश्वविद्यालय सदैव समाज के प्रगति में अपना योगदान देगा।





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