सतयुग दर्शन वसुन्धरा पर धूमधाम से मनाया गया समभाव दिवस

Posted by: | Posted on: September 8, 2019

फरीदाबाद (विनोद वैष्णव ) |सबकी जानकारी हेतु, एक मानव के जीवन में, आत्मिक ज्ञान प्राप्ति की आवश्यकता व समभाव-समदृष्टि की महत्ता को जानने-समझने हेतु सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वाराए प्रतिवर्ष की भांति दिनाँक ७ सितमबर २०१९ को, विश्व समभाव दिवस के रूप में बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया। साथ ही इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय मानवता ई-ओलमिपयाड. २०१९ के परिणाम भी घोषित किए गए। स्कूली स्तर पर पाँचवी से आठवीं तक के लेवल में हरिद्वार के अमन कुमार ने व नौंवी से बारवहीं तक के लेवल में रिवाड़ी की जाग्रति गुप्ता ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है। बेसट परफोरमेन्स की स्कूल ट्राफी में प्रथम स्थान क्रमशरू राजकीय माध्यमिक सीनियर सैकन्डरी स्कूल लुध्याना ने, द्वितीय स्थान दयाल सिंह पलिक स्कूल करनाल ने एवं तृतीय स्थान जय एकेडमी झांसी ने प्राप्त किया है। कालेज स्तर पर रिवाड़ी के पुनीत गुप्ता ने प्रथम स्थान, कैथल की राशी ने द्वितीय स्थान एवं जालन्धर के रचित सूरी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया है। व्यक्तिगत स्तर पर हुई परीक्षा में मुरादाबाद के भारत अहूजा ने प्रथम स्थान, हिसार की अलका ने द्वितीय स्थान एवं इटावा की अंजली अग्रवाल ने तृतीय स्थान प्राप्त किया है। इन सब विजेताओं को टी0वी, लैपटाप, टेबलेट, स्मार्टफोन, इत्यादि प्रदान किए गए। इसके अतिरिक्त अन्य हजार विजेताओं को ई-गेजेटस व अन्य आकर्षण इनाम इत्यादि प्रदान किए गए | इस शुभ अवसर पर ट्रस्ट के मार्गदर्शक सजन जी ने समभाव की महत्ता बताते हुए हजारों की सं2या में उपस्थित जनसमुदाय को समबोधित करते हुए कहा जानो समता ही योग है यानि आत्मा-परमात्मा की एक अवस्था का प्रतीक है। समता मूलाधार है,समानता, एकरूपता, सदृश्यताए निष्पक्षता व धीरता का। इससे मन में विषमता नहीं पनपती और वह शांत अवस्था में सधा रहता है इसीलिए समभाव नजऱों में करने पर, मनुष्य के ह्नदय में, सजन-वृत्ति का विकास होता है, और फिर वह इसी विचारधारा अनुरूप, सबके साथ समदर्शिता का आचार-व्यवहार करता हुआ, सदा अफुर व आनन्दमय बना रहता है। समभाव के अर्थ को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि समभाव राग-द्वेष का उपशमन कर, जन्म-मरण, रोग-सोग, खुशी-गमी, मान-अपमान, अमीरी-गरीबी, दु:ख-सुख, विजय-पराजय, लाभ-हानि आदि में समरस रहने का भाव है। समभाव अपना कर जो समग्र विश्व के प्रति एक सा नज़रिया रखता है, वह सजनता का प्रतीक न किसी को प्रिय समझता है, न अप्रिय। ऐसा समदर्शी अपने-पराए की भेद-बुद्धि व द्वन्द्वों से परे हो अर्थात् समस्त 1लेशो, पापों व संघर्षों से छुटकारा पाए सर्वथा निराकुल व शांत हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि समभाव की साधना को परिपक्व तभी माना जाता है जब समग्र विश्व एकरूपता से दिखाई देता है। इसीलिए तो जिसका मन समभाव में स्थित हो जाता है वह जीते-जी ही हर शै में परब्राहृ परमेश्वर का अनुभव कर संसार पर विजय प्राप्त कर लेता है। अत: उन्होंने उपस्थित सजनों से अनुरोध किया कि ममत्व बुद्धि से रहित होकर, समभाव अनुरूप जीने की पद्धति को ही अपनाओ 1योंकि इससे भिन्न पद्धति को अपनाने पर न तो जगत की और न ही जीवन की सार्थकता को प्राप्त करना संभव हो सकता है और यही अभाव फिर मनगढंत व हानिकारक विचारधारा को अपनाने का हेतु बनता है। इसीलिए जात-पात, ऊँच-नीच आदि के कारण उत्पन्न होने वाली भेद-प्रवृति त्याग दो और समभाव से ओत-प्रोत हो अविलमब सबके साथ सह्मदयता से सजनतापूर्ण व्यवहार करना आरमभ कर दो। याद रखो अपने सुख-दु:ख के समान दूसरे के सुख-दु:ख का अनुभव करना मानव जीवन की परम श्रेष्ठ अनुभूति है। यही वास्तव में समता का निर्मल रूप है। संक्षेपतरू उन्होने सभी से कहा कि यदि समभाव को साधना है तो देह अभिमान से ऊपर उठो यानि शरीर और शरीर से समबन्धित वस्तुओं के प्रति जो लगाव है, आसक्ति, मोह-ममता व अज्ञान है, उसे त्याग दो। इसके स्थान पर यह सत्य मान लो कि यह शरीर परिवर्तनशील हैए नश्वर है और आत्मा नित्य एकरस व अजर-अमर-अविनाशी है। फिर इसी सत्य अनुरूप विचार में स्थिर बने रह, मन-वचन-कर्म द्वारा व्यावहारिकता अपनाओ।इसी संदर्भ में उन्हांने बताया कि इसी प्रयोजन की सिद्धि हेतु ट्रस्ट के परिसर में आज की भटकी हुई मानव जाति को मानसिक रूप से इसी प्रकार तैयार करने के उद्देश्य के निमित्त, च्च्ध्यान-कक्ष्ज्ज् अर्थात् च्च्समभाव-समदृष्टि का स्कूलज्ज् बिलकुल नि:शुल्क खोला गया है। अंत में उन्होंने इस शुभ दिवस पर उन्होंने विभिन्न देशों की सरकारों, यू0 एन0 ओ0 एवं उपस्थित शिक्षाविदों से कुल मानव जाति को स्वाभाविक नैतिक पतन की गर्त में जाने से बचाने हेतु, वसुन्धरा परिसर की ही भांति, जगह-जगह पर समभाव-समदृष्टि के स्कूल खोलकर, हर मानव को उचित ढंग से आत्मिक ज्ञान प्रदान करने की व्यवस्था कायम करने की अपील की ताकि प्रत्येक मानव परिपूर्णता से नैतिक व्यवस्था को भौतिक व्यवस्था से उच्चतर मानने में विश्वास कर, तद्नुरूप आचार-व्यवहार दर्शा पूर्णतया इंसानियत में ढल जाए। उन्होंने कहा कि सजनों एकजुट होकर ऐसा अनथक परिश्रम दिखाए हर मानव के ह्दय में मानवता का विकास कर पुन: इस जगत में मानवता का परचम लहरा दो व इस पावन धरा से कलियुग का नामोनिशान मिटाए सतयुग की स्थापना कर रोती हुई भारत माता को हर्षा दो।





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