वंशीवट, भांडीरवन (चार पहर वंशीवट भटको सांझ परे घर आयौ ):-डॉ मीनाक्षी पांडेय

Posted by: | Posted on: July 9, 2020

वंशीवट स्थान वही है जो भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में अपनी माता यशोदा माता से कहा था। इसी स्थान पर श्रीकृष्ण ने तरह-तरह की लीलाएं कीं। तहसील मांट मुख्यालय से एक किमी दूर यमुना किनारे यह स्थान है यहां पर श्रीकृष्ण नित्य गाय चराने जाते थे। बेणुवादन, दावानल का पान, प्रलम्बासुर का वध तथा नित्य रासलीला करने का साक्षी रहा इस वट का नाम वंशीवट इसलिये पड़ा कि इसकी शाखाओं पर बैठकर श्री कृष्ण वंशी बजाते थे और । वंशीवट नामक इस वटवृक्ष से आज भी कान लगाकर सुनें तो ढोल मृदंग, राधे-राधे की आवाज सुनायी देती है।इसकी छांव में बैठकर भजन करने से मनोकामना पूरी होती है इसी स्थान पर सैकड़ों साधु तपस्या में लीन रहते हैं। वंशीवट स्थान के महंत जयराम दास महाराज इस स्थान के जीर्णोद्धार के लिये रात दिन एक किये हुये हैं। परन्तु शासन प्रशासन ने इस पौराणिक धरोहर को संजोने के लिये कोई कदम नहीं उठाया।

वंशीवट मथुरा जिले में वृंदावन के यमुना के किनारे स्थित है। कहते हैं कि यहां इसी स्थान पर द्वापर युग में श्रीकृष्ण अपने बालपल में अपने गोप सखाओं और गायों के साथ खेला करते थे और गायों को चराते हुए विश्राम करते थे। और थक जाने पर इसी वृक्ष पर बैठ कर घंटों वेणुवादन करते थे और उस वंशी की मीठी ध्वनि सुनकर ग्वाल वाल ,गोपियाँ और गायें मंत्र मुग्ध हो जाते थे। इसी जगह पर ठाकुर श्री कृष्ण जो कि रास बिहारी भी थे ,ने तरह-तरह की लीलाएं कीं। माना जाता है कि इस वटवृक्ष से आज भी कान लगाकर ध्यान से सुनने पर आपको ढोल, मृदंग और वंशी की आवाज सुनाई देगी। परन्तु इस बात का अत्यन्त ही दुःख ह ने इस पौराणिक धरोहर को संजोने के लिए किसी भी प्रकार का कोई कदम नहीं उठाया है। परन्तु इस बात का अत्यन्त ही दुःख है कि प्रशासन ने इतनी खूबसूरत श्री कृष्ण के धरोहर को सँभालने के लिए कोई विशेष प्रयोजन नही किया। परन्तु इन सबसे अलग आज भी करोड़ों दर्शनाभिलाषी इस सूंदर स्थान का दर्शन करने आते हैं और यहाँ की दैवीयता और भक्ति का लाभ उठाते हैं, माना जाता है कि इस वटवृक्ष से आज भी कान लगाकर ध्यान से सुनने पर आपको ढोल, मृदंग और वंशी की आवाज सुनाई देगी। ऐसा आप वह प्रत्यक्ष जाकर स्वयं महसूस कर सकते हैं.

वंशीवट ब्रजमंडल में भांडीरवन के भांडीरवट से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। यह श्रीकृष्ण की रासस्थली है। यह वंशीवट वृन्दावन वाले वंशीवट से पृथक है। जब भी वंशीवट पर लिखने की बात आती है तो श्री ब्रज मंडल में दो वंशीवट हैं। एक वंशीवट भांडीरवन में है। और एक वंशीवट श्री वृन्दावन धाम में है.दोनों हे वंशीवट की अपनी अलग अलग महानता और मान्यता है।

श्रीकृष्ण जब यहाँ गोचारण कराते, तब वे इसी वट वृक्ष के ऊपर चढ़कर अपनी वंशी से गायों का नाम पुकार कर उन्हें एकत्र करते और उन सबको एकसाथ लेकर अपने गोष्ठ में लौटते। कभी-कभी श्रीकृष्ण सुहानी रात्रि काल में यहीं से प्रियतमा गोपियों के नाम ‘राधिके! ललिते! विशाखे’! पुकारते। इन सखियों के आने पर इस वंशीवट के नीचे रासलीलाएँ सम्पन्न होती थीं

भांडीरवन में श्री ब्रम्हा जी ने कराया था श्री कृष्ण और राधा रानी का विवाह

श्री मथुरा से करीब ४० किलोमीटर दूर तहसील मांट में भांडीरवन है और यही वह स्थान है जो श्री राधा रानी और श्री कृष्ण के विवाह का साक्ष्य है ,इसकी चर्चा गर्ग संहिता में भी की गयी है। आज भी हज़ारों श्रद्धालू यहाँ श्री राधा रानी और श्री कृष्ण के विवाह के शादी के प्रमाण देखने के लिए यहाँ स्थित मंदिर में दर्शन करने आते हैं इस विवाह में केवल ४ लोग मौजूद थे स्वयं नारद मुनि ने श्री राधा रानी का कन्यादान किया था और श्री ब्रह्मा जी ने स्वयं पंडित बनकर शादी कराई थी। जिस दिन राधा रानी की शादी हुई थी ,उस दिन घनघोर बदल छाए थे श्री ब्रम्हा जी ने स्वयं मंत्रोच्चार करके शादी कराई थी। इस प्रकार श्री राधा रानी की मांग में सिंदूर भरते समय श्री कृष्ण की इस दुनिया में कही अन्यत्र नही हैं.कहते है भांडीरवन में श्री कृष्ण ने कई असुरों का संघार भी किया था

कृष्ण और राधा के कथानक में रस लेने वाले अधिकांश रसिक यही जानते हैं उनकी कभी शादी नहीं हो सकी। मगर, गौड़ीय संप्रदाय में राधा के कृष्ण से विवाह होने का विश्वास किया जाता है। यही कारण हैं गौड़ीय मत से दीक्षित श्रीमती राधा कहते हैं जबकि पूरे ब्रज में श्रीराधा कहने का ही ही चलन है। इन दो मतों के बीच हमेशा ही यह विमर्श कायम रहा कि क्या वाकई कभी कृष्ण और राधा की शादी हुई। बृज का भांडीरवन ऐसा वन है, जहां राधा-कृष्ण के प्रगाढ़ प्रेम के अध्याय का हर आखर साक्षात हो उठता है। स्वयं ब्रह्माजी ने भांडीर वन में आकर राधा-कृष्ण का विवाह कराया ऐसी मान्यता आज भी है। भांडीर वन आज भी राधा-कृष्ण विवाह की गाथा को जीवंत कर रहा है। ब्रह्मवैवर्त पुराण, गर्ग संहिता और गीत गो¨वद में भी राधा-कृष्ण के भांडीरवन में विवाह का वर्णन किया गया है। मथुरा से करीब तीस किलोमीटर दूर मांट के गांव छांहरी के समीप यमुना किनारे भांडीरवन है। करीब छह एकड़ परिधि में फैले इस वन में कदंब, खंडिहार, हींस आदि के प्राचीन वृक्ष हैं। भांडीरवन में बिहारी जी का सबसे प्राचीन स्थल माना गया है। यहां मंदिर में श्री जी और श्याम की अनूप जोड़ी है। जिसमें कृष्ण का दाहिना हाथ अपनी प्रियतमा राधा की मांग भरने का भाव प्रदर्शित कर रहा है। मंदिर के सामने प्राचीन वट बृक्ष है। जनश्रुति है कि इसी वृक्ष के नीचे राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। वट वृक्ष के नीचे बने मंदिर में राधा-कृष्ण और ब्रह्मा जी विराजमान है

यह वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण गोपीनाथ ने (गोपी के भगवान के रूप में) शरद पूर्णिमा (पूर्णिमा की रात) के शुभ दिन पर महारास नृत्य की लीला की। वंशी का अर्थ है बांसुरी और वट का अर्थ बरगद वृक्ष है। श्री कृष्ण अपनी बांसुरी बरगद के वृक्ष के नीचे बजा रहे हैं, इसे वंशी वट के नाम से जाना जाता है। दिव्य बांसुरी सुनने पर, गोपी भावनात्मक रूप से असहाय हो गयी और वंशी वट की तरफ दौड़ आयी। यहां श्री कृष्ण नित्य ही बांसुरी बजाते हैं। श्री कृष्ण ने गोपियों के लिए कई रूपों को धारण किया। यह वंशी वट की लीला 5500 वर्ष पुरानी है। भगवान शिव इस स्थान पर महारास के दौरान एक गोपी के रूप में आए और इसलिए श्री कृष्ण ने उन्हें “गोपीश्वर महादेव” नाम दिया। यह भी उल्लेख किया गया है कि “वृंदावन की तरह कोई जगह नहीं है, नंद गांव जैसा कोई गांव नहीं है, वंशी वट की तरह कोई बरगद का वृक्ष नहीं है, और राधा कृष्ण की तरह कोई नाम नहीं है”।श्री कृष्ण के लिए गोपियों का इतना गहरा प्रेम था कि उन्होंने श्री कृष्ण की इच्छा के लिए अपने बच्चों, पतियों और घरों को छोड़ दिया। रास लीला के दौरान, श्री कृष्ण ने गोपियों को वियोग दिया और उनसे अलक्षित हो गए। गोपियों ने कृष्ण की खोज शुरू कर दी और जब कृष्ण से अलग होने की उनकी तीव्र भावना पागल पन के चरम बिंदु तक पहुंचने वाली थी, कृष्ण उनके सामने उनके शुद्ध प्यार से प्रभावित होकर आगये। यहां एक बड़ा वट वृक्ष का रूप भी है जहां श्री राधा गोपीनाथ दिखाई दिए (जो अब जयपुर में है)। ऐसा माना जाता है कि आज भी श्री कृष्ण अपनी बांसुरी बजा रहे हैं और कई लोग दावा करते हैं कि वे भी इसे सुन सकते हैं।

स्थान:
जब चैतन्य महाप्रभु पहले वृंदावन आए, तो वह केवल वंशी वट आए। सूरदास जी ने दिव्य स्थान के लिए एक पद लिखा है: “कहाँ सुख ब्रज कौसो संसार ! कहाँ सुखद वंशी वट जमुना, यह मन सदा विचार।” जिसका अर्थ है ” वंशी वट वृंदावन यमुना जी के किनारे को छोड़कर दुनिया में कहीं भी कोई सुख नहीं है”। जब भी वंशीवट पर लिखने की बात आती है तो श्री ब्रज मंडल में दो वंशीवट हैं। एक वंशीवट भांडीरवन में है। और एक वंशीवट श्री वृन्दावन धाम में है.दोनों हे वंशीवट की अपनी अलग अलग महानता और मान्यता है।





Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *